नवाबगंज गोंडा /अमित कुमार श्रीवास्तव
हक और बातिल की जंग में हुई इंसाफ और इंसानियत की जीत का पैगाम देने वाला पर्व मोहर्रम पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया गया। यौमे आशूरा के मौके पर ताजियादारो ने बडी तादाद में ताजिया का जुलूस निकाला कर गमे हुसैन मनाया। इस दौरान नवाबगंज पुलिस द्वारा सुरक्षा के सख्त बंदोबस्त किये गये हैं। इस्लाम के आखिरी पैगम्बर नबी-ए-करीम के नवासे इमाम-ए-हुसैन की शहादत से पहले भी मुहर्रम की दसवीं तारीख का महत्व रहा है। इस दिन की काफी फजीलतें हैं। इस दिन को यौमे आशूरा कहा जाता है। अल्लाह के पहले नबी हजरत आदम (अ०स०) की तौबा कुबूल हुई थी। हजरत नूह (अ०स०) की कश्ती एक भयंकर तूफान से जूदी पहाड़ पर रुकी थी। हजरत मूसा (अ०स०) को बादशाह फिरऔन के जुल्म से निजात, हजरत अय्यूब (अ०स०) को लंबी बीमारी से लाभ मिला। हजरत युनुस (अ०स०) को मछली के पेट से बाहर आए थे। आशूरा के दिन यानि दस मुहर्रम को एक बहुत ही अहम और गम से भरा हुआ वाक्या भी पेश आया था। जिसकी वजह से इस दिन को इमाम-ए-हुसैन की शहादत से याद किया जाता है। कर्बला के मैदान में इमाम की शहादत का मातम पूरी दुनिया में मनाया जाता है। हक और बातिल की जंग में इमाम के बहत्तर साथी शहीद हुए थे। इनका जन्म 8 जनवरी 626 ई० ‘काबा शरीफ’ में हुआ था। इमाम की न्याय और लोकप्रियता से आताताई क्रूर शासक यजीद का सिंहासन हिल रहा था। उसने इमाम से कहा कि तुम मुझे इस्लाम का ‘खलीफा’ मान लो और अपने हाथ को मेरे हाथ पर रखकर बैअ्त ले लो। हुसैन ने इंसाफ और इंसानियत के लिए सर कटा दिया। लेकिन यजीद के जुल्म ओ ज्यादती से समझौता नहीं किया। इस मौक पर अब्दुल मुजीब एडवोकेट, उस्मान राईनी, रजज्ब अली, छेदी मास्टर, शाबान अली हनफी सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
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